How are banks dealing with defaulters right now?

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Mohan

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I believe the number of loan defaulters has just grown drastically right now. I was just wondering how the banks are dealing with such defaulters, knowing that the pandemic is still looming.
 

jcrc

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In India's financial sector, the management of defaulters is a critical aspect that banks continually grapple with. As the economic landscape evolves, especially amid the challenges posed by the COVID-19 pandemic, banks are employing various strategies to handle defaulters while balancing the need for recovery and maintaining a conducive lending environment.

1. Restructuring Loans: In response to the economic downturn triggered by the pandemic, banks have introduced loan restructuring schemes to provide relief to borrowers facing financial distress. These schemes allow borrowers to renegotiate the terms of their loans, such as extending the repayment period or reducing the interest rates, thereby helping them avoid default.

2. Asset Reconstruction Companies (ARCs): Banks often collaborate with ARCs to offload their non-performing assets (NPAs) and recover dues from defaulters. ARCs acquire distressed assets from banks at a discounted price and attempt to revive them or sell them off to recover the outstanding dues. This approach helps banks clean up their balance sheets and mitigate the impact of NPAs on their profitability.

3. Legal Recourse: Banks resort to legal measures to recover dues from defaulters, including initiating legal proceedings, filing recovery suits, and enforcing collateral agreements. While legal recourse can be time-consuming and resource-intensive, it serves as a crucial mechanism for banks to exert pressure on defaulters and compel them to repay their dues.

4. One-Time Settlements: Banks may offer one-time settlement options to defaulters, wherein they agree to accept a lump sum amount as a full and final settlement of the outstanding dues. This approach allows banks to expedite the recovery process and minimize losses, albeit at the cost of partial recovery of the dues.

5. Credit Monitoring and Risk Management: To preemptively identify potential defaulters and manage credit risks, banks employ robust credit monitoring systems and risk management frameworks. These systems utilize data analytics, credit scoring models, and early warning indicators to assess the creditworthiness of borrowers and proactively mitigate the risk of defaults.

6. Enhanced Communication and Counseling: Recognizing the importance of communication in resolving default cases, banks often engage in direct communication with defaulters to understand their financial challenges and explore feasible repayment solutions. Additionally, banks may offer financial counseling services to defaulters to help them manage their debts more effectively and avoid future defaults.

7. Digitalization and Automation: With the advent of digital technologies, banks are increasingly leveraging automation and digitization to streamline their debt recovery processes. Automated reminders, online payment portals, and digital documentation facilitate smoother interactions with defaulters and expedite the recovery process while reducing operational overheads.

In conclusion, banks in India are adopting a multifaceted approach to deal with defaulters, combining financial restructuring, legal recourse, risk management, and digital innovation to navigate the complex landscape of non-performing assets. By implementing proactive measures and leveraging technology, banks aim to strike a balance between recovering dues and supporting borrowers in overcoming financial challenges.
 

jcrc

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बैंकों का डिफॉल्टर्स से निपटने का नया तरीका: क्या बदल रहा है?"

परिचय:


आजकल बैंकों के सामने सबसे बड़ी चुनौती है डिफॉल्टर्स से निपटना। डिफॉल्टर्स वे लोग या कंपनियाँ हैं जो बैंक से लिए गए लोन का भुगतान समय पर नहीं कर पाते हैं। इस स्थिति में, बैंकों को अपनी वित्तीय स्थिरता बनाए रखने और निवेशकों का भरोसा जीतने के लिए सख्त कदम उठाने पड़ते हैं। आइए जानें कि मौजूदा समय में बैंक डिफॉल्टर्स से कैसे निपट रहे हैं और इसमें क्या बदलाव आ रहे हैं।

I. डिफॉल्टर्स से निपटने के पारंपरिक तरीके:

A. लीगल एक्शन (Legal Action):


पहले, बैंक डिफॉल्टर्स के खिलाफ लीगल एक्शन लेते थे। इसमें कोर्ट केस करना और संपत्ति जब्त करना शामिल होता था। यह प्रक्रिया लंबी और खर्चीली होती थी, जिससे बैंक और डिफॉल्टर्स दोनों को परेशानी होती थी।

B. रिकवरी एजेंट्स (Recovery Agents):

बैंक रिकवरी एजेंट्स की मदद लेते थे, जो डिफॉल्टर्स से पैसे वसूलने के लिए सीधे संपर्क करते थे। हालांकि, इस तरीके में भी कई चुनौतियाँ थीं, जैसे कि एथिकल मुद्दे और ग्राहकों की नाराजगी।

II. वर्तमान समय में बैंकों के नए तरीके:

A. वन टाइम सेटलमेंट (One Time Settlement - OTS):


आजकल, बैंक डिफॉल्टर्स के साथ वन टाइम सेटलमेंट (OTS) का ऑफर दे रहे हैं। इसमें डिफॉल्टर्स को उनके बकाया लोन का एक निश्चित हिस्सा एकमुश्त भुगतान करने का मौका मिलता है। इससे बैंक और डिफॉल्टर्स दोनों को फायदा होता है, क्योंकि बैंक को तुरंत कुछ रकम मिल जाती है और डिफॉल्टर्स का लोन खत्म हो जाता है।

B. रीस्ट्रक्चरिंग (Restructuring):

बैंक लोन की शर्तों को बदलकर डिफॉल्टर्स की मदद कर रहे हैं। इसमें लोन की अवधि बढ़ाना, ब्याज दर कम करना या EMI को रीस्ट्रक्चर करना शामिल है। यह तरीका डिफॉल्टर्स को राहत देता है और उन्हें अपनी वित्तीय स्थिति सुधारने का मौका मिलता है।

C. डिजिटल रिकवरी (Digital Recovery):

बैंक अब डिजिटल टूल्स और टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके रिकवरी कर रहे हैं। इससे प्रक्रिया तेज और पारदर्शी हो जाती है। बैंक SMS, ईमेल और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स का उपयोग करके डिफॉल्टर्स से संपर्क करते हैं और उन्हें भुगतान के लिए याद दिलाते हैं।

D. एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी (Asset Reconstruction Company - ARC):

बैंक अपने NPA (Non-Performing Assets) को एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनियों को बेच रहे हैं। ये कंपनियाँ इन संपत्तियों को खरीदकर उन्हें वसूलने का काम करती हैं। इससे बैंक का बोझ कम होता है और वे अपने कोर बिजनेस पर फोकस कर सकते हैं।

III. इनसॉल्वेंसी और बैंकरप्सी कोड (IBC):

इंसाॉल्वेंसी और बैंकरप्सी कोड (IBC) के लागू होने के बाद से, बैंक अब दिवालिया कंपनियों के खिलाफ तेजी से कार्रवाई कर सकते हैं। इससे बैंक की रिकवरी प्रक्रिया तेज हो गई है और उन्हें जल्दी से अपने बकाया लोन वापस मिल सकते हैं।

IV. सामुदायिक सहयोग:

बैंक डिफॉल्टर्स की पहचान करने और उनसे निपटने के लिए सामुदायिक सहयोग का भी सहारा ले रहे हैं। स्थानीय संगठनों और सामाजिक संस्थाओं के साथ मिलकर बैंक डिफॉल्टर्स की समस्याओं को समझने और उन्हें सुलझाने का प्रयास कर रहे हैं।

निष्कर्ष:

आजकल बैंक डिफॉल्टर्स से निपटने के लिए नए और प्रभावी तरीके अपना रहे हैं। वन टाइम सेटलमेंट, रीस्ट्रक्चरिंग, डिजिटल रिकवरी, और IBC जैसी प्रक्रियाओं से बैंक अपनी वित्तीय स्थिरता बनाए रखने में सफल हो रहे हैं। डिफॉल्टर्स के लिए भी यह एक मौका है कि वे अपनी वित्तीय स्थिति को सुधारें और बैंक के साथ सहयोग करें।

इस नई दिशा में बैंक और डिफॉल्टर्स दोनों के लिए ही उम्मीद और सहयोग का संदेश है। आपके बैंकों की यह यात्रा संघर्ष और सफलता की कहानी है, जिसमें सही रणनीति और समझदारी से ही सही परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं।
 
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